राष्ट्रीय एकता और स्थायित्व के लिए राष्ट्रभाषा की अनिवार्यता किसी भी राष्ट्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह भी सच है कि बिना अपनी भाषा के कोई भी राष्ट्र गूंगा होता है। अपने विचार दूसरों तक पहुंचने के लिए संवाद जरूरी है और संवाद के लिए भाषा का होना अति आवश्यक है। राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिए राष्ट्रभाषा की महत्ती आवश्यकता है।
यह देश का दुर्भाग्य है कि भारतीय संविधान में राजभाषा का दर्जा पाने के बावजूद हिंदी को आज तक देश में उचित सम्मान नहीं मिल पाया है। 15 अगस्त 2019 को भारत देश ने अपनी आज़ादी की 73वीं वर्षगांठ मनाई है परन्तु यह बहुत दुःखद है कि अभी तक देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नही किया जा सका है। राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। देश तो अंग्रेजों से आजाद हो गया लेकिन हिंदी भाषा पर तो आज भी अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य कायम है। भारत में हमें भी अपनी हिन्दी भाषा पर वैसा ही फख्र करना चहिये जैसे फ्रेंच, जापान, फ्रांस, जर्मनी और चाइनीज अपनी भाषा पर फख्र महसूस करते हैं। भारत में ही हिन्दी की दुर्दशा देखिए कि आप किसी से सवाल हिन्दी में पूछेंगे और आपको वो व्यक्ति जवाब अंग्रेजी मे देगा। मेरा मानना है कि जापान, चीन, रूस जैसे विकसित देशों ने अपनी मातृभाषा को महत्त्व दिया है और निरन्तर प्रगतिमान हैं।
किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा और उसकी संस्कृति से होती है। देश की सफलता का कारण वहाँ की राष्ट्रभाषा और संस्कृति होती है। यदि कोई देश अपनी मूल भाषा को छोड़कर दूसरे देश की भाषा पर आश्रित होता है उसे सांस्कृतिक रूप से गुलाम माना जाता है। विचारों का आदान-प्रदान किसी भाषा में हो लेकिन भावनाओं को प्रदर्शन करने के लिए अपनी मातृभाषा हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। हमें यदि हिंदी भाषा को संजोए रखना है तो इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाना होगा। हिंदी अति सरल और मीठी भाषा है। हम अपनी “हिंदी” भाषा को उचित स्थान नहीं देते हैं अपितु अंग्रेजी जैसी भाषा का प्रयोग करने में गर्व महसूस करते हैं। हिंदी जानते हुए भी लोग हिंदी में बोलने पढ़ने या काम करने में हिचकिचाने लगे हैं।